बुधवार, 16 जुलाई 2014

वो जब से मेरा आशना हो गया। ग़ज़ल

वो   जब   से   मेरा   आशना   हो   गया ।
अपनी किस्मत पे मेरा सोचना हो गया ।।
सूरत   बसी   उसकी  आँखों  में  जब  से ।
सारी  -  सारी   रात  जागना   हो   गया ।।
हक़ीकत   में  जी  भर  के  देख  न पाया ।
ख़्वाबों  में   उसको  निहारना   हो गया ।।
करके हिम्मत फोन पे सब कुछ कह डाला ।
कह   न  पाया  जब   सामना   हो  गया ।।
वो  लड़की   मेरी   ज़िन्दगी    बन  गयी ।
हर  दुआ  में  उसी को  माँगना  हो गया ।।
कैसे  अब  चुप  रह  सकता  है   'सागर' ।
सीने  में  यादों  का  उबलना   हो  गया ।।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें